कैसे बने मनोज मोरे एक स्टाफ से 150 करोड़ की कंपनी चाय सुट्टा बार के लीडिंग मैनेजर

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मामेंद्र कुमार शर्मा (संपादक डिस्कवरी न्यूज) मनोज मोरे मध्य प्रदेश के छोटे से गांव सनावद से आते है. गांव में करने को ज़्यादा कुछ था नहीं तो उनके माता पिता अपने परिवार के साथ इंदौर काम की तलाश मे आ गए. 7 लोगो के परिवार में मनोज के साथ उनकी 3 बहने, 1 भाई और माता पिता थे. इंदौर में उनके पिता ने चौकीदारी का काम शुरू किया और उनकी माँ घरो में काम करती थी और इन दोनों के आमदनी से ही घर का गुज़ारा हो रहा था. फैमिली में सबसे छोटे मनोज और उनकी बहन ही थी जिन्हे पढ़ाई का मौका मिला, दोनों का सरकारी स्कूल में दाखिला हुआ. धीरे धीरे समय बिता और 2009 से मनोज की कठिनाईयाँ बढ़ने लगी। उनके पिता की सेहत खराब होने लगी क्योंकि उनको पैरालिसिस अटैक आया मगर घर की आर्थिक स्तिथि खराब होने के कारण, उनका इलाज सही तरीके से नहीं हो पाया और 2 महीने के अंदर उनका देहांत हो गया। मनोज के पिता के जाने के बाद उनकी माँ ने घर की और अपने बच्चो की ज़िम्मेदारी उठाई। उनकी माँ ने और 3-4 घरों में काम करना शुरू कर दिया। माँ की परेशानी देख मनोज और उनके बड़े भाई ने काम करना शुरू किया।

जहाँ उनके भाई को फ़ूड डिलीवरी का काम मिला, वही मनोज की कम उम्र के कारण कहीं काम नहीं मिल रहा था। तो उन्होंने गाड़ी सफाई करने का काम किया और साथ ही साथ पढ़ाई भी की। थोड़े समय बाद उन्हें पार्ट टाइम में डेंटल क्लीनिक पर जॉब मिली, जहाँ वो झाड़ू पोछा और पेशेंट्स के जूते,चपल उठा कर रखते थे। काम करते करते समय बिता तभी एक और आफत उनका इंतज़ार कर रही थी और पता चलता है की उनकी माँ को ब्लड कैंसर है और थोड़े समय बाद उनकी माँ ने भी मनोज का साथ छोड़ दिया। बिना माँ बाप के जैसे सब कुछ ही खत्म हो गया हो। माँ के देहांत के बाद मनोज अपने परिवार के साथ वापिस अपने गांव, सनावद चले गए, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था की अब आगे क्या होगा तभी उनके चाचा ने उनको हिम्मत दिलाई और वापस इंदौर ले कर आ गए। वापस आने के बाद एक दिन यूँ ही आनंद जी से जब उनकी मुलाकात हुई तो उन्होने मनोज को अपने साथ अपने कपडे की दुकान में काम करने का प्रस्ताव दिया और उन्होंने आनंद जी के साथ काम करने के लिए हामी भर दी। मनोज ने 2 साल आनंद जी के कपडे की दूकान में काम किया और जब आनंद जी और अनुभव जी ने चाय सुट्टा बार शुरू करने का सोचा तो मनोज को भी अपने साथ रखा और इस तरह वह चाय सुट्टा बार के पहले कामगार भी बने । मनोज से जब पूछा एस्प्रेसो मशीन चला लोगे और मनोज ने हा कहा मनोज को लगा की ये मज़ाक कर रहे है। पर थोड़े दिनों बाद मनोज को ऐस्क्परेसो मशीन सिखाने के लिए ले गए। धीरे -धीरे मनोज को आनंद जी और अनुभव जी ने काम सिखाया, वैसे तो उन्होंने बहुत संघर्ष किया ऐस्क्परेसो मशीन को सिखने में कभी कभी उनके हाथ भी जल जाया करते थे पर तब भी चाय सुट्टा बार का सारा काम वही देखते थे झाड़ू पोछा से लेकर चाय बनाने तक। इसी दौरान अनुभव जी और आनंद जी के एक और दोस्त राहुल जी भी सीएसबी के साथ जुड़ गए।

 

जहाँ चाय मनोज बनाते थे, आनंद जी सर्व करते थे और राहुल जी का काम कॅश काउंटर और और अनुभव जी का काम पार्किंग संभालना था इस तरह शुरुआत हुई चाय सुट्टा बार और मनोज की ऊंचाइयों की। आनंद जी ने मनोज को हमेशा से ही अपना छोटा भाई माना है। आनंद जी जो चाय सुट्टा बार के फाउंडर्स में से एक है उन्होंने सी एस बी के शुरुवाती दिनों में ही मनोज से एक वादा किया था के मनोज का इंदौर में अपना घर बनवाएंगे और गाड़ी भी खुद की होगी आज मनोज का इंदौर में अपना घर भी है और गाड़ी भी। मनोज अपनी माँ से हमेशा कहा करते थे के ऍम पी में उनको अपना घर बनाना है और जिस दिन यह सपना पूरा हुआ उस दिन उन्होंने अपने माता पिता को याद किया। मनोज ने सी एस बी में अपनी शुरुआत चाय बना कर की और आज वह 2 टीम लीड करते है एक फैट टीम और एक ट्रेनिंग टीम और अभी तक वह चाय सुट्टा बार में 3,500 लोगो को ट्रेनिंग दे चुके है. मनोज का कहना है के चाहे जैसा भी वक़्त आ जाये कभी हार नहीं मानना चाहिए, किस्मत का लिखा कहीं नहीं जाता और अपने मेहनत पे ध्यान देना है आपको उसका फल ज़रूर मिलेगा ।