कोचिंग के लिए रोज 7 घंटे ट्रेन का सफर करते थे सौरभ, अब टेस्ट टीम में मिली जगह

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सात साल पहले 21 साल के सौरभ कुमार को भी करियर को लेकर हुई दुविधा का सामना करना पड़ा था कि वह अपने जुनून को चुनें या फिर अपना भविष्य सुरक्षित करें। खेल कोटे पर भारतीय वायुसेना में कार्यरत सौरभ दुविधा में थे। उन्हें सभी भत्तों के साथ केंद्र सरकार की नौकरी मिल गई थी। लेकिन उनके दिल ने उन्हें प्रेरित किया कि वह पेशेवर क्रिकेट खेलें और भारतीय टीम में जगह हासिल करने की ओर बढ़े।

भारतीय टेस्ट टीम में शामिल किए गए 28 वर्षीय बायें हाथ के स्पिनर सौरभ ने कहा, ‘जिंदगी में ऐसा समय भी आता है जब आपको एक फैसला करना पड़ता है। जो भी हो, लेना पड़ता है।’ उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के इस क्रिकेटर ने कहा, ‘सेना के लिए रणजी ट्राफी खेलना छोड़ने का फैसला करना बहुत मुश्किल था। मुझे भारतीय वायुसेना और भारतीय सेना का हिस्सा होना पसंद था। लेकिन अंदर ही अंदर मैं कड़ी मेहनत करके भारत के लिए खेलना चाहता था।’

उन्होंने कहा, ‘मैं दिल्ली में कार्यरत था। मैं एक साल (2014-15 सत्र) सेना के लिये रणजी ट्रॉफी में खेला था जब रजत पालीवाल हमारा कप्तान था।’ उन्होंने कहा, ‘क्योंकि मैंने खेल कोटे से प्रवेश किया था तो मुझे सेना के लिए खेलने के अलावा कोई ड्यूटी नहीं करनी पड़ती थी। अगर मैंने क्रिकेट छोड़ दिया होता तो मुझे ‘फुल टाइम’ ड्यूटी करनी होती।’ मध्यम वर्ग के परिवार से ताल्लुक रखने वाले सौरभ के पिता ‘ऑल इंडिया रेडियो’ में जूनियर इंजीनियर के तौर पर काम करते थे। उनके माता-पिता हालांकि हर फैसले में पूरी तरह साथ थे।

उन्होंने कहा, ‘जब मैंने अपने माता-पिता को भारतीय वायुसेना की नौकरी छोड़ने के बारे में बताया तो उन्हें एक बार भी मुझे फिर से विचार करने को नहीं कहा। दोनों मेरे साथ थे जिससे मुझे अपने सपने की ओर बढ़ने का आत्मविश्वास मिला।’ सौरभ ने अपने शुरूआती दिनों के बारे में बात करते हुए कहा, ‘अब हम गाजियाबाद में रहते हैं लेकिन दिल्ली में क्रिकेट खेलने के शुरूआती दिनों में मुझे नेशनल स्टेडियम में ट्रेनिंग के लिए रोज दिल्ली आना पड़ता था क्योंकि तब हम बागपत के बड़ौत में रहते थे, वहां कोचिंग की अच्छी सुविधायें मौजूद नहीं थी।’

सौरभ की कोच सुनीता शर्मा हैं जो द्रोणाचार्य पुरस्कार द्वारा सम्मानित एकमात्र महिला क्रिकेटर हैं। उनके एक अन्य शिष्य पूर्व विकेटकीपर दीप दासगुप्ता हैं। सौरभ ने कहा, ‘अगर मुझे नेट पर दोपहर दो बजे अभ्यास करना होता था तो मैं सुबह 10 बजे घर से निकलता। ट्रेन से तीन-साढ़े तीन घंटे का समय लगता जिसके बाद स्टेडियम पहुंचने में आधा घंटा और फिर वापस लौटने में भी इतना ही समय लगता। यह मुश्किल था लेकिन जब मैं मुड़कर देखता हूं तो इससे मुझे काफी मदद मिली।’ उन्होंने कहा, ‘जब आप 15-16 साल के होते हैं तो आपको महसूस नहीं होता। आपमें जुनून होता है कि कुछ भी आपको मुश्किल नहीं लगता है।’

सौरभ के लिए एक ‘टर्निंग प्वाइंट’ महान क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी से गेंदबाजी के गुर सीखना रहा जो उन दिनों ‘समर कैंप’ आयोजित किया करते थे और काफी सारे युवा क्रिकेटर इसमें अभ्यास करते थे। सौरभ ने कहा, ‘बेदी सर ने मेरी गेंदबाजी में जो देखा, उन्हें वो चीज अच्छी लगती थी। उन्होंने मुझे ‘ग्रिप’ और छोटी छोटी अन्य चीजों के बारे में बताया। उन्होंने ज्यादा बदलाव नहीं किया क्योंकि उन्हें मेरा एक्शन और मैं जिस क्षेत्र में गेंदबाजी करता था, वो पसंद था।’ उन्होंने कहा, ‘उन ‘समर कैंप’ में एक चीज हुई कि मुझे सैकड़ों ओवर गेंदबाजी करने का मौका मिला। बेदी सर का एक ही मंत्र था, ‘मेहनत में कमी नहीं होनी चाहिए’।’

Source News: punjabkesari